Sufism is an institution of divine love, an inborn, everlasting intoxication, divine contentment, a fulfillment of soul.
In the followers of Sufism, the tendency to give innumerous sacrifices, softness and a passion to serve the fellow beings that is appreciable to share the sufferings of others without difference of cast, creed or status.
Sufis express their free thoughts, because of which they were attacked by established religions and so sufis found it to express in poetry and music which is “Mehfil-e-Sama“.
Inspite of innumerous obstacles and problems created by misguided muslims this caravan has continued this journey with glory.
Sufism owes it’s origins to Hazrat Mola-E-Qaynat and he established a new plane of JABROOT in the divine world with special blessings of Prophet Hazrat Mohammad Saheb.
In this chain followed Hazrat Khwaja Garib Nawaz(Ajmer), Hazrat Baba Qutub(Delhi), Hazrat Baba Fareed(Lahore), Hazrat Sabir paak kaliyari(Rourkee), Hazrat Baba Tajuddeen(Nagpur) and Shah-E-Alam Hazrat Manzoor Alam Shah.
These are few personnas visualizing whom the people realized what is a real Sufi. Where labels end and a human being is considered just as a human.
“Learn the spiritual ways with Sufis“
“जो धर्म और मज़हब की खराबियों से निकल कर मज़हबे-इश्क़ यानी इश्क़े-हक़ीक़ी से जुडें उन्हें सूफ़ी कहते हैं। जिनका ख़ास मक़सद मख्लूके खुदा की ख़िदमत करना ही रहा है “
सूफ़ीवाद की यही खूबी रही है की इसका मानने वाला हर दौर में, चाहे वो कैसा भी रहा हो , अपनी जगह पहाड़ की तरह जमा रहा। तर्के दुनिया का पहलु भी बहुत ख़ास है, सूफ़ी दुनिया में रहते हुए भी तर्क करते रहते हैं। “ये आशिक़ों का गिरोह है , इनका दीन यानी कायदा क़ानून अलग है, लाल पत्थर खुद अपनी जगह लाल है, उसमें उसकी कीमत खुद मौजूद है। “ ये बातिनी इश्क़ के दरिया में ग़र्क़ रहते हैं और बेफिक्र जीते हैं। महफ़िल-ए-समा और संगीत असली सूफ़ियों की रूहानी ग़िज़ा है। इस समा के ज़रिये क़ायम होने वाला जुडाव, रूहानी मंज़िलों को तय करवाने का सबब बनता है। “हम सूफ़ी हैं , हमारी तहज़ीब है – मुख्तलिफ तहज़ीबों के फ़ूल इकट्ठा कर के गुलदस्ता सजाना , इस कलयुग में ख़त्म हो रही इंसानियत को ज़िंदा करना और हम ये करते रहेंगे। जानवर से आदमी , आदमी से इंसान , इंसान से इंसान-ए-क़ामिल“
इस सिलसिले की बुनियाद हज़रात मौला-ए-क़ायनात ने रखी और एक नया ठिकाना आसमान में जबरूत का बनाया। इस सिलसिले में जहां भारत की बात आती है , हज़रत ख्वाज़ा ग़रीब नवाज़ (अजमेर), हज़रत बाबा क़ुतुब (दिल्ली), हज़रत बाबा फ़रीद (लाहौर), हज़रत साबिर पाक् कलियरि(रूड़की), हज़रत बाबा ताजुद्दीन (नागपुर), हज़रत मौजशाह बाबा (मुरादाबाद) और शाहे आलम मंज़ूर आलम शाह और जाने कितने बुज़ुर्ग जिनके नाम गिनना इस जगह मुमकिन नहीं।
“ख़ाक शौ ता अज तो रुयद रंग रंग”
(मिटटी हो जाओ, ताकि तुमसे रंग रंग की चीज़ें उगें)